मानवाधिकार आयोग ने जिलाधिकारी से मांगा जबाब, आखिर क्यों दबाया जा रहा है शिकायतकर्ता का पक्ष
ललितपुर-तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी अनिल कुमार पाण्डेय को मनमाने तरीके से काम कर अपने पद का दुरूपयोग करना भारी पड़ता नजर आ रहा है। महोली के बर्खास्त रोजगार सेवक की शिकायत पर उत्तर प्रदेश मानव अधिकार आयोग ने जिलाधिकारी को नोटिस जारी किया है कि आखिर जिस अधिकारी के विरूद्ध शिकायत है उस प्रकरण की जांच उसी अधिकारी को ही क्यों दी गयी। यह प्रकरण पूर्व जिलाधिकारी के समय आया था। उन्होंने इस प्रकरण की जांच के लिए एक कमेटी भी गठित कर दी है। जिसमें एडीएम व एएसपी शामिल है। प्रकरण मानव अधिकार आयोग में पहुंचने पर ग्राम्य विकास विभाग के कई अधिकारी चौकन्ने नजर आ रहे है।
शिकायकर्ता सुरेश कुमार ने मुख्यमंत्री को एक शिकायत की थी कि महोली के मनरेगा नाबालिग जॉब कार्ड प्रकरण में उसकी सेवा समाप्त कर दी गयी। जबकि इस प्रकरण में कई उच्चाधिकारियों पर भी गंभीर आरोप थे। परन्तु तत्कालीन सीडीओ अनिल कुमार पाण्डेय व डीसी मनरेगा रविन्द्र वीर द्वारा अपने पद का दुरूपयोग कर अधिकारियों का निरंतर बचाव किया जा रहा था। शिकायत में यह भी मांग की गयी थी कि महोली जैस कई अन्य प्रकरण भी हुए। परन्तु सभी प्रकरण में सीडीओ द्वारा एक समान्य कार्यवाही नही की गयी है। शिकायतकर्ता ने 20 बिन्दुओं को लेकर कई बार शासन से लेकर उच्चाधिकारियों तक शिकायत की। शासन ने इस प्रकरण की जांच के लिए जिलाधिकारी ललितपुर को पत्र लिखा था। परन्तु कलेक्ट्रेट के प्रभारी अधिकारी द्वारा उक्त प्रकरण की जांच तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी अनिल कुमार पाण्डेय को ही दे दी। उनके द्वारा फिर से यह प्रकरण दबा दिया गया।
जिससे क्षुब्द्ध होकर शिकायतकर्ता सुरेश कुमार ने उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग में एक अपील प्रस्तुत की। जिसमें उसने आरोप लगाया कि मुख्य विकास अधिकारी अपने पद का दुरूपयोग कर उसकी शिकायतों को दबा रहे है। जिस कारण उसे न्याय नही मिल पा रहा है। मानवाधिकार आयोग ने इस प्रकरण को गंभीरता से लिया है। अपने 5 जुलाई 2023 के आदेश में उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि मुख्य विकास अधिकारी अनिल कुमार पाण्डेय पर जो आरोप है वह गंभीर प्रवृत्ति के है। उनके पद की प्रबलता के कारण एक व्यक्ति को न्याय नही मिल पा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि जिलाधिकारी ललितपुर यह भी स्पष्ट करें कि आखिर किन परिस्थितियों में आरोपी अधिकारी से ही मामले की जांच कराई गयी। न्यायहित में यह किसी भी प्रकार उचित नही है, क्योंकि शिकायतकर्ता द्वारा जिस पर आरोप अंकित किये जा रहे हो उसी अधिकारी को जांच दी जा रही है। मानवाधिकार आयोग ने इस प्रकरण में जिलाधिकारी को 10 सितम्बर तक अपना जबाव प्रस्तुत करना था। परन्तु जिलाधिकारी आलोक सिंह के स्थानांतरण के कारण इस प्रकरण में जबाव नही जा सका। इसके बाद जबाव देने के लिए मानव अधिकारी आयोग से अतिरिक्त समय लिया गया है।
कलेक्ट्रेट के प्रभारी अधिकारी शिकायत जिसके विरूद्ध आरोप उसी को देते है मामले की जांच
जिलाधिकारी कार्यालय में जनता न्याय की उम्मीद के साथ पहुंचती है। परन्तु कुछ समय से यहां पर एक टेंªड चल रहा है। मुख्यमंत्री कार्यालय या शासन स्तर से जो भी शिकायतें कलेक्ट्रेट को प्राप्त होती है। कलेक्ट्रेट के प्रभारी अधिकारी शिकायत उस प्रार्थना पत्र को उसी अधिकारी के पास भेज देते है। जिस अधिकारी के विरूद्ध शिकायत की गयी है। सबसे अधिक आईजीआरएस का मजाक बना कर रखा है। अधिकांश शिकायतों में आरोपी अधिकारी से जबाव लेकर प्रार्थना पत्र का निस्तारण कर दिया जाता है। शिकायतकर्ता सुरेश कुमार के मामले में भी यही हुआ। जो शिकायत मुख्य विकास अधिकारी के विरूद्ध प्राप्त हुई कलेक्ट्रेट के प्रभारी अधिकारी शिकायत ने उक्त शिकायत जांच के लिए उन्ही के पास भेज दी। जिस पर उत्तर प्रदेश मानव अधिकार आयोग को सख्त रवैया अपनाना पड़ा है।
मानवाधिकार आयोग के जबाव तलब के बाद मामले की जांच के लिए बनाई कमेटी
उत्तर प्रदेश मानव अधिकार आयोग में मामला पहुंचते ही आला अधिकारी अलर्ट हो गये थे। सालों से पीड़ित जो शिकायत लेकर घूम रहा था और कार्यवाही की मांग कर रहा था। पहले तो उस पर कोई ध्यान नही दिया गया। बाद में जब आयोग ने जबाव मांगा तो तत्कालीन जिलाधिकारी ने मामले में कुछ सख्त रवैया अपनाया था। उन्होंने 31 जुलाई 2023 को एक आदेश कर इस प्रकरण की जांच के लिए अपर जिलाधिकारी वित्त राजस्व व अपर पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने शिकायतकर्ता से जहां शिकायत के संबंध में साक्ष्य मांगे, वही तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी अनिल कुमार पाण्डेय से भी स्पष्टीकरण तलब किया गया है। अब देखना है कि कमेटी उक्त प्रकरण में क्या कार्यवाही करती है।